जानिए भगवान् श्री गणपति गणेश जी (Shree Ganpati Ganesh Ji) की सर्वप्रथम पूजा का रहस्य
ऊँ गं गणपतये नम: ।।
भगवान् शिव शंकर और माता गौरी जी के लाडले सुपुत्र भगवान् श्री गणेश जी (Bhagwan Shree Ganesh Ji) का रूप देखते ही बनता है। सबसे अलग और बहुत ही निराला रूप है गणेश जी का। गजराज (हाथी) के मुख वाले गणेश जी के मुख पर एक सूंड, दो बड़े बड़े कान, दो बड़ी बड़ी आँखें और चार भुजाएँ उनको सबसे निराला और सुन्दर बनाती हैं। भगवान् गणेश जी की सवारी मूषक (चूहा) है। गणेश जी की कथा सुनने का इच्छुक तो उनका हर भक्त है।
प्यारे दोस्तों, आप सभी यह तो जानते ही होंगे की हमारे घर में या कहीं पर भी कोई पूजा हो, जागरण हो या फिर कोई भी शुभ कार्य का आरम्भ हो सबसे पहले भगवान् गणेश जी की पूजा ही की जाती है अर्थात उनको ही सर्वप्रथम मनाया जाता है। गणेश जी को पूजा में पान, फल, फूल, मेवा और लड्डू अत्यंत प्रिय हैं अर्थात गणेश जी इनसे जल्दी प्रस्सन होते हैं।
भगवान् गणेश जी की पूजा तो सर्वप्रथम की जाती है यह तो लगभग सभी जानते हैं किन्तु इसके पीछे भी एक कहानी या गाथा है जो शायद कम लोग ही जानते हैं और उसी गाथा की जानकारी आज आपको यहाँ मिलने वाली है।
क्यों पूजा जाता है भगवान् श्री गणपति गणेश जी (Shree Ganpati Ganesh) को सर्वप्रथम – जानिए गणेश जी की कथा
यह तब की बात है जब सभी देव गणों में इस बात पर बहस हो गई की कौन सबसे बुद्धिमान है और संसार में किसकी पूजा सर्वप्रथम होनी चाहिए। बस फिर क्या था सूर्य देव, बुध देव, जल देव और आदि सभी देव गणो में इस बात को लेकर कहा सुनी होने लगी। सभी देवता स्वयं को अधिक बुद्धिमान और शक्तिशाली बता रहे थे और साथ ही एक दूसरे की कोई बात समझ नहीं रहे थे।
तब उस वक़्त ऐसा देखकर की सभी देव गण आपस में ही झगड़ रहे हैं वहां पर मुनिवर नारद प्रकट होते हैं। नारद जी के प्रकट होते ही वहां एक दम सन्नाटा (Silence) हो जाता है और सभी एक दम आश्चर्यचकित हो कर पूछते हैं की मुनिवर आप यहाँ पर अचानक कैसे? मुनिवर जवाब देते हुए कहते हैं की आप सबको इस तरह से लड़ते झगड़ते देख कर ही मैं यहाँ पर आया हूँ। अब बताइए की आखिर बात क्या है?
फिर सभी देवताओं ने मुनिवर के समक्ष अपनी अपनी बात रखी और उनसे सुझाव माँगा। मुनिवर जी ने हँसते हुए कहा, कि बस इतनी सी बात है। इसका समाधान तो है मेरे पास। सभी ने कहा तो फिर बताइए कि हमें क्या करना चाहिए?
मुनिवर नारद जी ने कहा, कि इसके लिए हमें सृष्टि के रचेता भगवान् श्री शिव शंकर जी (Shree Shiv Shankar Ji) के पास जाना चाहिए। केवल वही हैं जो हमें इस दुविधा से मुक्त करवा सकते हैं और बस फिर सभी उनकी बात को मानते हुए भगवान् भोलेनाथ जी के पास कैलाश पर्वत पर पहुँच जाते हैं और उनके समक्ष अपनी बात रखते हैं।
भगवान् शिव उनकी इस बात को सुनकर कहते हैं कि इस बात का आंकलन करना कि कौन सबसे बुद्धिमान है और किसकी पूजा सर्वप्रथम होनी चाहिए यह तो बहुत ही सरल है। इसके लिए आप सभी देव गणों को एक प्रतियोगिता (Competition) का पात्र बनना होगा। यह सुनते ही सभी देव गण बहुत प्रसन्न होते हैं और अपनी-अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने लगते हैं।
भगवान् भोलेनाथ कहते हैं, प्रतियोगिता यह है कि आप सभी को इस ब्रह्माण्ड का पूर्ण चक्कर लगाकर सर्प्रथम कैलाश लौटना होगा। सभी देव गण बहुत ही प्रसन्न हुए और सभी अपने अपने वाहनों का आवाहन (Welcome) कर प्रतियोगिता के लिए एक दम तैयार हो गए। अब सभी देव गण भगवान् श्री गणेश जी के वाहन मूषक को देख कर हँसने लगे कि वह कैसे जीत पाएँगे इस प्रतियोगिता को?
अब जैसे ही प्रतियोगिता का आरम्भ होता है सभी अपने अपने वाहनों पर बैठ कर निकल जाते हैं ब्रह्माण्ड का भ्रमण करने और प्रतियोगिता में विजयी होने के लिए। परन्तु, भगवान् श्री गणेश जी (Shree Ganesh Ji) ऐसा नहीं करते और वहीँ कैलाश पर ही रह जाते हैं। ऐसा देख मुनिवर नारद बहुत ही आश्चर्यचकित होते हैं और गणेश जी से इसकी वजह पूछते हैं।
भगवान् गणेश जी कहते हैं, कि हमारे माता-पिता जिन्होंने हमें जन्म देकर इस संसार या ब्रह्माण्ड में आने का सुअवसर दिया, जो माता पिता हमारे लिए सदैव ही अपना बलिदान करने को तत्पर रहते हैं वही हमारे लिए सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड हैं और इसी कारण मैं कहीं और नहीं बल्कि अपनी माता गौरी और पिता शिव शंकर जी के चारों ओर चक्कर काट कर ही इस प्रतियोगिता में भाग लूँगा। भगवान् गणेश जी ऐसा ही करते हुए दोनों हाथ जोड़ कर अपने माता-पिता के चारों ओर चक्कर काटने लगते हैं।
वहीँ जब कुछ समय पश्चात् सभी देव गण अपनी अपनी यात्रा सम्पूर्ण करके वापिस लौट कर आते हैं तो वहां पर सर्वप्रथम भगवान् गणेश जी को देख बहुत ही आश्चर्य में पड़ जाते हैं और उनसे पूछते हैं कि हे गणपति गणेश आप सबसे पहले किस प्रकार यहाँ पर विराजमान हैं? तब भगवान् शिव सभी देव गणो को इसका जवाब देते हुए कहते हैं कि जब आप सभी प्रतियोगिता में भाग लेते हुए पूर्ण ब्रह्माण्ड का भ्रमण करने के लिए निकल गए थे तब श्री गणेश ने अपने माता पिता का भ्रमण करते हुए इस प्रतियोगिता में भाग लिया और जो एक दम सही निर्णय था। क्योंकि माता पिता से बढ़कर संसार में कुछ भी नहीं है।
तब भगवान् शिव जी ने गणपति गणेश जी को विजयी घोषित करते हुए यह वरदान भी दिया कि आज से समस्त संसार में किसी भी शुभ कार्य के आरम्भ में सर्वप्रथम गणेश की ही पूजा होगी और गणेश जी की आरती के गुणगान से ही आरम्भ होगा। ऐसा किए बिना कोई भी पूजा अर्चना सम्पूर्ण नहीं मानी जाएगी। किसी भी कार्य को करने से पहले गणेश का आवाहन करना अनिवार्य होगा।
तब से यही प्रथा चली आ रही है और भगवान् गणेश जी भी बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को अपना आशीर्वाद और कृपा देने से कभी पीछे नहीं हटते। यदि कोई भक्त अपने सच्चे मन और पूरे विश्वास से गणेश जी का गुणगान करे और अपने आप को उनके आगे समर्पित कर दे तो उसके मन की मुराद अवशय ही पूरी होती है। ऐसे कई उदाहरण हैं जो इस बात को सिद्ध करते हैं। भगवान् गणेश जी का आशीर्वाद हम सब बना रहे ऐसी हम दिल से कामना करते हैं।
तो बोलो, जय गणपति गणेश महाराज की जय!
जय गणपति गणेश महाराज की जय! Nice !
Pinki G, आपका बहुत बहुत धन्यवाद्। इसी तरह अपने सुझाव देते रहें।