सकारात्मक सोच की आत्मकथा – Autobiography of Positive Thinking

Sakaratmak Soch Ki Atmakatha

प्यारे दोस्तों, मैं अपनी ऐसी ही एक सच्ची बात आप सभी के साथ साँझा करना चाहुँगा जिसके बारे में मैं आज भी जब सोचता हूँ तो बहुत अच्छा लगता है। सकारात्मक सोच की आत्मकथा (Sakaratmak Soch Ki Atmakatha), यह नाम इसलिए दिया है क्योंकि यह किसी और की नहीं बल्कि मेरी ख़ुद की सच्चाई है-

यह बात मेरे साथ काम करने वाले एक लड़के की है। असली नाम नहीं बताना चाहता लेकिन आपको पढ़ने और समझने में आसानी हो इसलिए नकली (Fake) नाम ले रहा हूँ “रवि”।

रवि एक बहुत ही समझदार और होशियार लड़का था और साथ ही वह बहुत शर्मीला भी था। जब वह मुझसे पहली बार मिला तो उसे देखते ही मैं समझ गया था की रवि बहुत अच्छा लड़का है। रवि ने मुझे अपने बारे में बताना शुरू किया और मुझे भी उसकी बातें सुन कर अच्छा लग रहा था। फिर मैंने रवि से कहा कि अब आप अपना काम समझ लो और काम करना शुरू कर दो और रवि ने ऐसा ही किया और फिर वह धीरे-धीरे अपने काम को समझने लगा और मन लगा कर अपना काम करता रहा।

फिर एक दिन रवि के साथ काम करने वाले एक सहयोगी (Colleague) ने जो रवि को काम दिया करते थे उन्होंने मुझसे आ कर कहा कि बार-बार समझाने पर भी रवि अपना काम सही तरीके से नहीं कर रहा है और हर बार कोई न कोई गलती कर रहा है। तो कृपया आप एक बार उससे बात करें। मैंने उनकी बात सुनी पर मुझे जैसे विश्वास सा नहीं हुआ कि रवि ऐसे कैसे कर सकता है। तो मैंने उनसे कहा कि ठीक है आप जाइए मैं रवि से बात करता हूँ।

मैंने रवि को अपने पास बुलाया और बैठने को कहा। रवि मेरे पास बैठ तो गया लेकिन उसके चेहरे पर मैंने कुछ उदासी देखी जो मुझे अच्छी नहीं लगी क्योंकि वह हर समय खुश रहने वाला लड़का था। मैंने रवि से बात करना शुरू किया और पूछा की आपके सहयोगी कर्मचारी ने मुझसे आ कर आपके लिए कहा है कि आप अपना काम ध्यान से नहीं कर रहे हैं। तो रवि ने कुछ ख़ास न बताते हुए बस यही कहा कि उसकी तबियत पिछले कुछ दिनों से ठीक नहीं है जिसकी वजह से वह पूरी तरह से अपना ध्यान काम में नहीं दे पा रहे हैं। बस फिर मैंने भी ज्यादा कुछ न पूछते हुए रवि को यही कहा कि ठीक है वह अपना ध्यान रखें और काम को ठीक से करने का प्रयास करें।

फिर कुछ दिन निकल गए और फिर एक दिन रवि के वही सहयोगी मेरे पास आए और कहा कि देखिये आपके कहने पर भी रवि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। वह फिर से अपना काम सही से नहीं कर रहा है और यहाँ तक कि उनके सहयोगी ने परेशान हो कर रवि को काम तक छोड़ कर चले जाने को कह दिया था। मैंने फिर रवि को बुलाया अपने पास और थोड़ा समझा कर भेज दिया। परन्तु कुछ ठीक नहीं हुआ और ऐसे ही थोड़े दिनों तक चलता रहा।

मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था और अंदर से ऐसा लग रहा था कि जैसे रवि कुछ सही से बता नहीं रहे हैं अर्थात उनके मन में कुछ और है जो वह बताने में संकोच कर रहे हैं। फिर मैंने सबके चले जाने के बाद रवि को एक दिन अपने साथ रुकने को कहा और रवि मेरी बात मान कर रुक गए।

उस दिन मैंने रवि से पूछा कि बताओ क्या बात है और घबराओ नहीं, बात जो भी हो मैं यह बात किसी को नहीं बताऊंगा और हो सका तो पूरी सहायता करूँगा। रवि ने किसी तरह मुझ पर विश्वास करते हुए और हौंसला दिखाते हुए अपनी बात बतानी शुरू कि जिस वजह से वह इतने समय से अपना ध्यान काम में नहीं लगा पा रहा था वह उसकी सेहत के साथ-साथ उससे भी ज्यादा बड़ी समस्या थी।

वह समस्या थी उनके परिवार को लेकर। रवि ने बताया कि उनकी पारिवारिक स्थिति ठीक नहीं है अर्थात उनके परिवार कि आर्थिक स्तिथि (Financial Condition) बहुत खराब है। वह दो भाई हैं और छोटा भाई अभी अपनी पढाई पूरी कर रहा है। इसलिए बड़ा भाई होने के नाते घर कि सारी जिम्मेदारी रवि पर ही है। पिता जी कि कमाई (Income) भी बहुत कम है जिस वजह से घर का गुज़ारा बहुत मुश्किल से चलता है। इन्ही सब बातों के चलते वह थोड़ा परेशान रहता है और काम में पूरी तरह से ध्यान नहीं लगा पाता। रवि की यह बात सुन कर दिल को बहुत दुःख हुआ कि अपने घर की परेशानी की वजह से वह अपने जीवन (Life) में आगे नहीं बढ़ पा रहा और मैंने देखा कि, रवि की सोच अब बहुत ही नकारात्मक (Negative) हो गई थी। रवि को लगने लगा था कि अब वह अपने जीवन में कुछ नहीं कर पाएगा। फिर मैंने दुखी मन के साथ उसको वहाँ से चलने को कहा।

फिर कुछ दिन बाद, मुझे पता लगा की रवि को नौकरी (Job) छोड़ कर चले जाने को कह दिया गया है। उस दिन मुझे सही में यह लगा कि किसी भी तरह से अगर मैं रवि को रोक सकूँ तो मेरे लिए यह बहुत बड़ी बात होगी पर अफ़सोस कि मैं ऐसा नहीं कर सकता था। लेकिन उस समय मैंने यह ज़रूर सोचा था कि अब मैं रवि को इस तरह से उदास और नकारात्मक सोच (Nakaratmak Soch) के साथ नहीं रहने दूँगा और रवि में इतना आत्मविश्वास (Self Confidence) भर दूँगा कि वह एक कामयाब इंसान बन सके।

दोस्तों, आपको यह जान कर ख़ुशी होगी कि मैं ऐसा करने में कामयाब भी रहा।

रवि की नौकरी के आखिरी दिन मैं रवि से मिला और लगभग 1 घंटा रवि के साथ बिताया और उनको जीवन की सच्चाई से अवगत करवाने की कोशिश की। रवि के साथ बहुत सारी बातें करते हुए रवि को बताया कि आना और जाना तो सबके साथ है परन्तु हम जहाँ से भी निकल कर आगे जाएं वहां से कुछ सिख कर जाना चाहिए। आगे बढ़ो और कभी न रुको बस यही करना है हमेशा। ऐसा कभी नहीं सोचना की मेरे साथ यह गलत हुआ सिर्फ यही मन में आना चाहिए की जो होता है वह अच्छे के लिए ही होता है। फिर मैंने रवि को बेस्ट ऑफ़ लक (Best of Luck) बोला और चलने को कहा।

दोस्तों, आपको भी यह जानकर बहुत ख़ुशी होगी कि फिर लगभग 2 महीने बाद, मुझे रवि का फ़ोन आया और उन्होंने मुझे बताया कि वह अब एक नई जगह काम करने लग गए हैं और वहां पर सब कुछ बहुत ही अच्छा चल रहा है और सब उनके साथ अच्छे से बात करते हैं। उस दिन रवि ने मुझसे कहाँ सर (Sir), यह सब कुछ आपकी वजह से संभव हो पाया है। अगर उस दिन आपने मुझे वह सब कुछ नहीं समझाया होता तो आज पता नहीं मैं क्या कर रहा होता। जो आपने उस दिन मुझसे कहा वह मैंने अपने दिमाग और जीवन में उतार लिया और यह उसी का परिणाम है।

उस दिन रवि से ज़्यादा खुश शायद मैं था क्योंकि मुझे लग रहा था कि यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है कि अगर मेरी सकारात्मक सोच (Positive Thinking) की वजह से किसी की नकारात्मक सोच बदल सकती है और वह अपने जीवन में कुछ अच्छा हासिल करने में समर्थ हो सकता है तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है। तो देखा दोस्तों, किस तरह सकारात्मक सोच हमारे जीवन में मह्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।

सकारात्मक रहिए, स्वस्थ रहिए !

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